Monday, August 15, 2011

वर्जिन

सर्जन के चेम्बर से निकलते हीं उसने साथ चल रहे युवक का हाथ पकड़ा और बोली,
सुना तुमने ?’
हाँ
क्या सुना ?’
यही कि आधे घंटे की सर्जरी के बाद तुम्हारी वर्जिनिटी वापस आ जायेगी। खर्च साठ हजार रुपये।
पर मेरे पास तो मात्र बीस हजार रुपये ही हैं। तुम चालीस दे दो ना।
लेकिन यह वर्जिनिटी का भूत तुम पर सवार कैसे हुआ ?’
इंगेजमेंट के दिन उसने बुलाकर मुझसे कहा कि यदि मैं वर्जिन हूँ तभी शादी के लिए आगे बे डाईवोर्स कर देगा। वर्जिनिटी को लेकर वह काफी संजीदा है।
तो उससे क्या? मैं हूँ ना।
छोड़ो, हँसी-ठिठोली मत करो। सीरियस मैटर है। आखिर इसके पीछे भी तो तुम हीं हो।
तो एक बात बताओ, मेरे साथ रहने में क्या हर्ज है ?’
शादी करो तो मैं अभी रहने को तैयार हूँ पर लिव इन रिलेशनशिप पर मुझे भरोस नहीं है। मैं शादी के बन्धन में बँधना चाहती हूँ।
तो वर्जिन बन जाओ।
लेकिन चालीस हजार का जुगाड़ तो कर दो।
वो तो कर दूँगा पर आज रात 10 बजे होटल किस्मत कमरा नं.- 615 में मिलो। शायद अन्तिम बार। जाते वक्त सुबह चालीस हजार ले लेना। ऑपरेशन तो शाम को होगा। दिन में आराम कर लेना और शाम को वर्जिन हो जाना। इसके बाद शादी में ही मिलूँगा एक प्यारे से गिफ्ट के साथ।
इतना कहकर वह अपनी कार में बैठ गया। तिरछी नजरों से लड़की को देखा और मुस्कुराकर बोला,
होटल किस्मत........ रात 10 बजे........ चालीस हजार।
लड़की चुपचाप उसे जाती देखती रही अपलक।

फ़र्क


बी.एड. की काउंसिलिंग चल रही थी। आज वह अपने ससुर के साथ काउंसिलिंग में भाग लेने आयी थी। उसके साथ उसका तीन साल का बेटा भी था। वेटिंग हॉल में बैठे-बैठे वह सोचती जा रही थी कि पिछले तीन बार वह टेस्ट में बैठी पर सफ़ल नहीं हो पाई लेकिन इस बार उसका सपना सच हो जाएगा। हालांकि उसका रैंक काफी नीचे है, परन्तु स्ववित्तपोषित कॉलेज में प्रवेश से वह काफी घबड़ाती है। वहाँ काफी शोषण होता है। प्रबन्धक तो बी.एड. को कामधेनु गाय समझते हैं। उसमें भी दबंग प्रबन्धकों का तो कहना ही क्या। ये आधुनिक समय के सामन्त हैं। उनकी मर्जी के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं होता। भगवान से वह प्रार्थना करते जा रही थी कि उसे स्ववित्तपोषित कॉलेज न मिले। उसके पति भी ऐसा हीं ख्याल रखते हैं तभी तो आज सुबह उन्होंने भी किसी सहायता प्राप्त कॉलेज को लॉक करने का सुझाव दिया था। इसी बीच चपरासी ने और लोगों के साथ उसका नाम पुकारा रोल नंबर 1 लाख 12 हजार, सावित्री पति शोभनाथ।
नाम सुनते ही वह एक झटके से उठ पड़ी। उसने अपने बेटे को वहीं छोड़ा और काउंसिलिंग के लिए कमरे में दाखिल हुई।
नाम?’
सावित्री
पति का नाम?’
स्व. शोभनाथ
अपने सारे डॉक्यूमेंट्स दिखाइये
सावित्री ने सारे ओरिजिनल्स सामने प्रस्तुत कर दिये।
सावित्री जी आपने लिखा है और सर्टीफ़िकेट भी लगाया है विधवा का। वेटेज पाने के लिए। क्या आप सचमुच विधवा हैं?’
हाँ सर.....
लेकिन आपके माँग में लगा सिन्दूर ?’
नहीं सर, यह सिन्दूर नहीं है
इतना कहकर सावित्री ने अपने माँग का सिन्दूर अपने रुमाल से तुरन्त पोंछ दिया।
बात मानिये सर, मेरा प्रमाण-पत्र सही है सर। मुझे कोई भी कॉलेज एलॉट कर दीजिए।
अधीक्षक ने महिला की आँखों में देखा और फिर उसके माथे को। ललाट की लालिमा अभी भी चुगली कर रही थी। उसने ओके तो कर दिया लेकिन आँख बन्द कर वह सोचता रहा और सावित्री को बाहर जाते देखने की हिम्मत न जुटा सका। सावित्री भी तेजी से बाहर निकल गयी। वह डरी थी कि कहीं कुछ और भी सवाल न पूछ दिये जाएँ।

क्या ग्रामीण पत्रकारिता का अस्तित्व रह पायेगा...

क्या ग्रामीण पत्रकारिता का अस्तित्व रह पायेगा ... 1990 के बाद जब भारत में पत्रकारिता विशेषकर टीवी पत्रकारिता की शुरुआत हुयी तो पूरे पत्र...