बी.एड. की काउंसिलिंग चल रही थी। आज वह अपने ससुर के साथ काउंसिलिंग में भाग लेने आयी थी। उसके साथ उसका तीन साल का बेटा भी था। वेटिंग हॉल में बैठे-बैठे वह सोचती जा रही थी कि पिछले तीन बार वह टेस्ट में बैठी पर सफ़ल नहीं हो पाई लेकिन इस बार उसका सपना सच हो जाएगा। हालांकि उसका रैंक काफी नीचे है, परन्तु स्ववित्तपोषित कॉलेज में प्रवेश से वह काफी घबड़ाती है। वहाँ काफी शोषण होता है। प्रबन्धक तो बी.एड. को कामधेनु गाय समझते हैं। उसमें भी दबंग प्रबन्धकों का तो कहना ही क्या। ये आधुनिक समय के सामन्त हैं। उनकी मर्जी के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं होता। भगवान से वह प्रार्थना करते जा रही थी कि उसे स्ववित्तपोषित कॉलेज न मिले। उसके पति भी ऐसा हीं ख्याल रखते हैं तभी तो आज सुबह उन्होंने भी किसी सहायता प्राप्त कॉलेज को लॉक करने का सुझाव दिया था। इसी बीच चपरासी ने और लोगों के साथ उसका नाम पुकारा रोल नंबर 1 लाख 12 हजार, सावित्री पति शोभनाथ।
नाम सुनते ही वह एक झटके से उठ पड़ी। उसने अपने बेटे को वहीं छोड़ा और काउंसिलिंग के लिए कमरे में दाखिल हुई।
‘नाम?’
‘सावित्री’
‘पति का नाम?’
‘स्व. शोभनाथ’
‘अपने सारे डॉक्यूमेंट्स दिखाइये’
सावित्री ने सारे ओरिजिनल्स सामने प्रस्तुत कर दिये।
‘सावित्री जी आपने लिखा है और सर्टीफ़िकेट भी लगाया है विधवा का। वेटेज पाने के लिए। क्या आप सचमुच विधवा हैं?’
‘हाँ सर.....’
‘लेकिन आपके माँग में लगा सिन्दूर ?’
‘नहीं सर, यह सिन्दूर नहीं है’
इतना कहकर सावित्री ने अपने माँग का सिन्दूर अपने रुमाल से तुरन्त पोंछ दिया।
‘बात मानिये सर, मेरा प्रमाण-पत्र सही है सर। मुझे कोई भी कॉलेज एलॉट कर दीजिए।‘
अधीक्षक ने महिला की आँखों में देखा और फिर उसके माथे को। ललाट की लालिमा अभी भी चुगली कर रही थी। उसने ओके तो कर दिया लेकिन आँख बन्द कर वह सोचता रहा और सावित्री को बाहर जाते देखने की हिम्मत न जुटा सका। सावित्री भी तेजी से बाहर निकल गयी। वह डरी थी कि कहीं कुछ और भी सवाल न पूछ दिये जाएँ।
परिस्थिती कामधेनुओ की......!
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