Friday, November 8, 2013

चाँद ढल गया


चाँद ढल गया
                                  - डॉ अनिल यादव

उसको अपने स्कूल के इर्द-गिर्द कई बार मँडराते देखा। वह बूढ़ी औरत। उम्र लगभग 55-60। शरीर पर एक साधारण सी साड़ी। बाल सफेद और बिखरे हुए। ठीक 11 बजे आती। गेट के सामने खड़ी होती। अपलक स्कूल को देखती और पीछे मुड़कर चली जाती। मैंने स्कूल के अध्यापकों से उस बूढ़ी औरत के बारे में पूछा पर कोई नहीं बता पाया। आया भी नहीं जानती थी।

एक दिन मैं गेट पर खड़ा हो गया। जब वह औरत आई तो मैंने उसे ससम्मान प्रणाम किया और उसके लगातार वहाँ आने का कारण पूछा। वह जमीन पर बैठने लगी। मैंने उसे सहारा देकर प्रधानाध्यापक कक्ष में ले आया। बैठने के बाद उसने कहना शुरु किया। बाबूजी! हमार नाम भगजोगनी है। हम मल्लाहिन हैं। हमरी शादी शिव मल्लाह से भयी थी। 30-35 साल पहले। हमको तीन बेटा थे। एक बेटी है। भगेलू, स्वारथ, छोटका और बेटी छुटकी। गंगा किनारे हमार गाँव है शंकरपुर। नैया खेना, मछली मारना और बजार में बेचना हमार काम रहा। लेकिन अब न तो पति है और न हीं बेटवा। सबे गंगा मैया के भेंट चढ़ गये। दिन-रात गंगा मैया के सेवत रही। घरे में असली घी के दीया देखावत रही पर चार साल में हमरे आदमी, हमरे बचवन के अपनी गोदी में समा लिहिन।

तीन-तीन ठे लाल हेरा गयेन। कोई बाढ़ में दूसर के जान बचावत, तो कई मछली मारत मरा। छोटका के एक साहब जबरी ओह पार ले गयेन और जब वापस नैया से आवत रहा तो चकरवात में फँस गवा। चार दिन बाद लाश मिलै हमे। कुछ देर साँस लेने के बाद उसने फिर बोलना शुरु किया।

बाबूजी हमरी एक बिटिया है छुटकी। जूठा बरतन धोवत है। चौका-बरतन हमहुँ करीत है। जिनगी कौनो तरह चल जात है। उतारल साड़ी कपड़ा मिल जात है। तर-त्योहार पर नयो साड़ी मिलत है। ओका छुटकी के शादी बदे रख देइत है। छुटकी ही जीवन क सहारा हव।

हमके जादू-टोना करे वाली डाइन मत समझिह बाबूजी। स्कूल तो हम खाली एही बदे आ जाइत है कि बचवन के खेलत-कूदत और पढ़त अच्छा लगत है। हमरो बचवा पढ़त-लिखत रहतन, त इ हालत न होत न बाबूजी। उसकी आँखों से झर-झर आँसू गिरने लगे। तीन-तीन बेटों को खोने का गम दिखाई पड़ रहा था। मैंने अपने हाथों से उस औरत को पानी पिलाया। मेरे मुँह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे।


बाबूजी हम जाइत है। कई दिनन से माँड़-भात खात मन भर गवा है। आज आलू खरीद के घरे ले जाब बाबूजी चोखा बदे। इतना बोलकर वो सीढ़ियाँ सम्भल-सम्भल उतरकर गेट की तरफ चली गयी।

उप सम्पादक
आरोह अवरोह
(पटना से प्रकाशित मासिक पत्रिका)
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